ये नाज़ुक सी मिरे अंदर की लड़की अजब जज़्बे अजब तेवर की लड़की यूँही ज़ख़्मी नहीं हैं हाथ मेरे तराशी मैं ने इक पत्थर की लड़की खड़ी है फ़िक्र के आज़र-कदे में बुरीदा-दस्त फिर आज़र की लड़की अना खोई तो कुढ़ कर मर गई वो बड़ी हस्सास थी अंदर की लड़की सज़ावार-ए-हुनर मुझ को न ठहरा ये फ़न मेरा न मैं आज़र की लड़की बिखर कर शीशा शीशा रेज़ा रेज़ा सिमट कर फूल से पैकर की लड़की हवेली के मकीं तो चाहते थे कि घर ही में रहे ये घर की लड़की