ये ना-तमाम फ़साना तमाम हो तो सही हमारे साथ तुम्हारा भी नाम हो तो सही मिरे लिए भी ख़ुशी का पयाम हो तो सही अंधेरे घर में उजाले का नाम हो तो सही जहान-ए-नौ के ये महमूद भी क़दम चूमें अयाज़ जैसा कहीं भी ग़ुलाम हो तो सही मिले जो हम से तो पत्थर भी मोम हो जाए कोई बहाना बराए-कलाम हो तो सही सुकून-ए-दिल हो मयस्सर हमें किसी सूरत हमारी ऐसी कोई सुब्ह शाम हो तो सही हमारे लब पे तुम्हारा ही नाम क्या मा'नी तुम्हारे लब पे हमारा भी नाम हो तो सही बहुत ही दर्द में डूबे हैं रहबरान-ए-करम किसी के हाथ सही अपना काम हो तो सही मैं अपनी सुब्ह भी कर दूँ निसार उस पे 'जमील' किसी की ज़ुल्फ़ के साए में शाम हो तो सही