ये नीम-बाज़ तिरी अँखड़ियों के मयख़ाने

ये नीम-बाज़ तिरी अँखड़ियों के मयख़ाने
नज़र मिले तो छलक जाएँ दिल के पैमाने

शराब-ए-शौक़ से बोझल लबों के पैमाने
तिरी निगाह को ऐसे में कौन पहचाने

कहीं कली ने तबस्सुम का राज़ समझा है
जो ख़ुद चमन है वो अपनी बहार क्या जाने

जो होश में था तो कोई न मय-ब-जाम आया
बहक गया हूँ तो दुनिया चली है समझाने

अजब नहीं जो मोहब्बत मुझे समझ न सके
वो अजनबी हूँ जिसे ज़ीस्त भी न पहचाने

यहीं सुजूद-ए-मोहब्बत की बस्तियाँ थीं कभी
बता रहे हैं ये दैर-ओ-हरम के वीराने

कहीं चराग़ जलाने की हो रही है सबील
बुझा रहे हैं यहाँ शम्अ' ख़ुद ही परवाने

फ़रेब-ए-मशरिक़-ओ-मग़रिब हैं रहरवान-ए-जदीद
ये बद-नसीब न आक़िल हुए न दीवाने

वो ज़िंदा है जो बहे मौज-ए-वक़्त की रौ में
वो ज़िंदा-तर है जो तूफ़ाँ में ठैरना जाने

मैं अपनी बज़्म से इतना ही दूर हूँ कि 'नुशूर'
मिरी नवाओं से कुछ आश्ना हैं बेगाने


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