ये राज़ कोई जानने वाला भी नहीं है सूरज की विरासत में उजाला भी नहीं है सौ रस्ते कमाने के नज़र आते हैं लेकिन खाने के लिए एक निवाला भी नहीं है लब नाम तिरा लेने से कतराने लगे हैं हालाँकि तुझे दिल से निकाला भी नहीं है क्यों सुर्ख़ हुआ है ये फ़लक आज सर-ए-शाम मैं ने तो लहू अपना उछाला भी नहीं है वो लफ़्ज़ हूँ मैं जो न अदा हो सका 'हाफ़िज़' वो बात हूँ मैं जिस का हवाला भी नहीं है