ये रोज़-ओ-शब मिलेंगे कहाँ देखते चलें आए हैं जब यहाँ तो जहाँ देखते चलें ज़मज़म पिएँ शराब पिएँ ज़हर-ए-ग़म पिएँ हर हर नफ़स का रक़्स-ए-जवाँ देखते चलें हो जाएँ रफ़्ता रफ़्ता हसीनों की ख़ाक-ए-पा बे-नाम हो के नाम-ओ-निशाँ देखते चलें लहजे में रंग रुख़ में नज़र में ख़िराम में इक जान-ए-जाँ का लुत्फ़-ए-निहाँ देखते चलें आँखों से उँगलियों से लबों से ख़याल से जिस जिस बदन में जो है समाँ देखते चलें ये जान-आे-तन जो पीर हुए ग़म के बोझ से जाते हुए तो उन को जवाँ देखते चलें ख़ुश्बू से जिन की अब भी मोअ'त्तर हैं बाम-ओ-दर इन बस्तियों में उन के निशाँ देखते चलें ज़ौक़-ए-यक़ीं की हुस्न-ए-मुरव्वत की ग़म की मौत जो कुछ दिखाए उम्र-ए-रवाँ देखते चलें खाएँ फ़रेब रोज़ उठाएँ नक़ाब रोज़ हर शख़्स क्या है और कहाँ देखते चलें माना कि राएगाँ ही गई उम्र-ए-बे-सबात फिर भी हिसाब-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ देखते चलें