ये सच है उन में ये बातें तो हाँ हैं बड़े बद-ज़न निहायत बद-गुमाँ हैं ग़लत है ये वो हम पर मेहरबाँ हैं कहाँ अपनी समझ है हम कहाँ हैं न ये पूछें न आए हिज्र में मौत ख़ुदा भूला है बुत ना-मेहरबाँ हैं नहीं उठते हैं आ कर ग़ैर हरगिज़ मोहब्बत में यही बार-ए-गराँ हैं सुबूत-ए-इश्क़ है लब ख़ुश्क सर्द आह छुपाएँ क्या कि ये सब तो अयाँ हैं न पूछो बे-ख़ुदी-ए-इश्क़ हम से ख़बर भी कुछ नहीं है हम कहाँ हैं वो कुछ समझें सुना दें हाल-ए-दिल तो यही ना वो निहायत बद-गुमाँ हैं जब आया नावक-ए-क़ातिल सू-ए-दिल जिगर ही बोल उट्ठा हम यहाँ हैं अभी उक्ता गए तुम हज़रत-ए-दिल मोहब्बत में हज़ारों इम्तिहाँ हैं हमें बहला के रहते हैं ग़म-ओ-रंज यही फ़ुर्क़त में गोया मेहरबाँ हैं न क्यों रश्क आए बख़्त-ए-मुद्दई पर कि वो उस पर बहुत ही मेहरबाँ हैं करें किस तरह चाहत उन की हम कम अभी नाम-ए-ख़ुदा वो नौजवाँ हैं कभी कर दी थी ज़ाहिर ख़्वाहिश-ए-वस्ल जभी से तो बहुत वो बद-गुमाँ हैं हसीनों में नहीं कोई बुराई मगर इक ऐब ये है बद-ज़बाँ हैं न क्यों लुत्फ़ आए अब उन के सितम में सुना है वो शरीक-ए-आसमाँ हैं कहे देते हैं अब दिल को सँभालो कि हम आमादा-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ हैं समझते हैं हमें और ग़ैर को एक हमारे आप अच्छे क़द्र-दाँ हैं ज़रा ठहरो जो आए हो दम-ए-नज़अ कि अब हम कोई दम के मेहमाँ हैं 'फहीम' इतना ही क्या कम है हमें फ़ख़्र सुनो अहल-ए-ज़बाँ शीरीं-ज़बाँ हैं