ये सहन-ओ-रविश ये शम्स-ओ-क़मर ये दश्त-ओ-बयाबाँ कुछ भी नहीं जुज़ अपनी हद-ए-पर्वाज़ नज़र ऐ दीदा-ए-हैराँ कुछ भी नहीं है मुझ से वुजूद-ए-हस्त-ओ-अदम यूँ हस्त-ओ-अदम हैं ला या'नी ये ज़ीस्त का सामाँ कुछ भी नहीं ये उम्र-ए-गुरेज़ाँ कुछ भी नहीं ऐ दस्त-ए-जुनूँ है आर तुझे क्यूँ मेरी क़बा-ए-हस्ती से मैं चाक-ए-जिगर का क़ाइल हूँ ये चाक-ए-गरेबाँ कुछ भी नहीं शामिल है सरिश्त-ए-इंसाँ में तूल-ए-शब-ए-ग़म का उंसुर भी ये शाम-ए-फ़िराक़-ओ-ग़म-आगीं सुब्ह-ए-शब-ए-हिज्राँ कुछ भी नहीं कीना है तुझे किस दौलत से इस दामन-ए-हस्ती में क्या है जुज़ वादा-ए-रब्ब-ए-कौन-ओ-मकाँ ऐ गर्दिश-ए-दौराँ कुछ भी नहीं इक राह पे मुझ को छोड़ दिया मंज़िल का पता कुछ भी न दिया इस बाब की मैं तम्हीद बना जिस बाब का उनवाँ कुछ भी नहीं क़स्साम-ए-अज़ल ने तो बख़्शी आदम को मता-ए-इज़्ज़-ओ-शरफ़ ऐ गर्दिश-ए-दौराँ ये तो बता क्या अज़्मत-ए-इंसाँ कुछ भी नहीं फ़ितरत है मिरी कुछ इस दर्जा मानूस-ए-हक़ीक़त ऐ गुलचीं तक़रीब-ए-बहाराँ कुछ भी नहीं तख़रीब-ए-गुलिस्ताँ कुछ भी नहीं सहबा-ए-गिराँ-माया है अता मद्दाह-ए-मय-ए-ख़ुद्दारी हूँ ऐ जाम-ओ-सुबू के शैदाई ये ख़ाहिश-ए-अर्ज़ां कुछ भी नहीं क्या शरह-ए-निगाह-ए-दोस्त करूँ देखा ही नहीं कुछ इस के सिवा होता है इनायत दर्द बहुत और दर्द का दरमाँ कुछ भी नहीं वो कश्ती-ए-दिल ही डूब चुकी जो ज़ीस्त का हासिल थी 'फ़रहत' अब राहत-ए-साहिल कुछ भी नहीं अब शोरिश-ए-तूफ़ाँ कुछ भी नहीं