ये सारे फूल ये पत्थर उसी से मिलते हैं तो ऐ अज़ीज़ हम अक्सर उसी से मिलते हैं ख़ुदा गवाह कि उन में वही हलाकत है ये तेग़-ओ-तीर ये ख़ंजर उसी से मिलते हैं वो एक बार नहीं है हज़ार बार है वो सो हम उसी से बिछड़ कर उसी से मिलते हैं बिछा हुआ है वो गोया बिसात की सूरत ये सब सफ़ेद-ओ-सियह घर उसी से मिलते हैं ये धूप छाँव ये आब-ए-रवाँ ये अब्र ये फूल ये आसमाँ ये कबूतर उसी से मिलते हैं ये ख़ास साज़-ए-अज़ल से वो दाज्ला-ए-आहंग ये नील-ओ-ज़मज़म-ओ-कौसर उसी से मिलते हैं ये मोतिया ये चमेली ये मोगरा ये गुलाब ये सारे गहने ये ज़ेवर उसी से मिलते हैं अक़ीक़ गौहर-ओ-अल्मास नीलम-ओ-याक़ूत ये सब नगीने ये कंकर उसी से मिलते हैं