ये शहर-ए-रफ़ीक़ाँ है दिल-ए-ज़ार सँभल के मिलते हैं यहाँ लोग बहुत रूप बदल के आरिज़ हैं कि मुरझाए हुए फूल कँवल के आँखें हैं कि झुलसे हुए ख़्वाबों के महल के चेहरा है कि है आईना-ए-गर्दिश-ए-दौराँ शहकार हैं क्या क्या मिरे नक़्काश-ए-अज़ल के फ़रहाद सर-ए-दार है शीरीं सर-ए-बाज़ार बदले नहीं अब तक मगर अंदाज़ ग़ज़ल के आए हैं ग़म-ए-इश्क़ में ऐसे भी मक़ामात दिल ख़ून हुआ आँख से आँसू भी न ढलके दुनिया भी इक आमाज-गह-ए-हुस्न है 'शाइर' देखो तो ज़रा हज्ला-ए-जानाँ से निकल के