ये सोच कर न फिर कभी तुझ को पुकारा दोस्त दुश्मन का दोस्त हो नहीं सकता हमारा दोस्त हम ने कभी रखा ही नहीं है हिसाब-ए-इश्क़ तू ही हमारा नफ़अ है तू ही ख़सारा दोस्त आँखों का इक हुजूम लगा है मगर ये दिल भूला न आज तक तिरा पहला इशारा दोस्त सब को है अपनी अपनी ग़रज़ से ग़रज़ यहाँ कोई हमारा दोस्त न कोई तुम्हारा दोस्त जो कुछ अज़ल से होता रहा है वही हुआ हम को भी दोस्तों की अदावत ने मारा दोस्त चाहे तू ए'तिराफ़ करे या नहीं करे 'रूही' बग़ैर है नहीं तेरा गुज़ारा दोस्त