ये तमाम ग़ुंचा-ओ-गुल मैं हँसूँ तो मुस्कुराएँ कभी यक-ब-यक जो रो दूँ तो सितारे टूट जाएँ मिरे दाग़-ए-दिल की ताबिश जो कभी ये देख पाएँ वहीं रश्क-ए-बे-अमाँ से मह-ओ-मेहर डूब जाएँ कभी ज़ौक़-ए-जुस्तुजू पर अगर ए'तिबार कर लूँ सर-ए-राह मंज़िलें ख़ुद मुझे ढूँडने को आएँ कभी बे-क़रार हो कर जो मैं साज़-ए-इश्क़ छेड़ूँ तो ये मुशतरी-ओ-ज़ोहरा कोई गीत फिर न गाएँ मिरा ज़ौक़ मय-परस्ती है कुछ इस क़दर मुकम्मल जो मैं जाम-ए-मय उठा लूँ तो बरस पड़ें घटाएँ सर-ए-मय-कदा जो देखें मिरी मय-कशी का मंज़र हों शुयूख़ सर-ब-सज्दा करे ज़ाहिद इल्तिजाएँ