ये तर्क-ए-रब्त तो फ़र्दा पे टाल रखना था किसी भी हाल में रिश्ता बहाल रखना था दिलों की तल्ख़ियाँ सड़कों पे खींच लाया तू पुराने रब्त का कुछ तो ख़याल रखना था ये उस की सोच है अपनी वफ़ा करे न करे तुम्हें तो अपना कलेजा निकाल रखना था यूँ गुफ़्तुगू का कोई सिलसिला बढ़ाने को हमें जवाब में फिर से सवाल रखना था मिरे ख़याल की जुम्बिश भी भाँपने वाले तुम्हारा नाम तो हम को ग़ज़ाल रखना था मैं उठा और तिरे पास कोई बैठ गया मिरी ये भूल थी मुझ को रूमाल रखना था