ये तेरे मिरे हाथ By Ghazal << मैं वो हूँ जिस का ज़माने ... थकन को ओढ़ के बिस्तर में ... >> ये तेरे मिरे हाथ ख़ुशबू से बंधे हाथ कुछ भी न कहा उस ने और चूम लिए हाथ वो छत से दिखाती है मेहंदी से रंगे हाथ हम दूर निकल आए हाथों में लिए हाथ रौशन हुए मिट्टी में मिट्टी से भरे हाथ बुझती हुई शम्ओं पर मेहराब हुए हाथ Share on: