ये तो अच्छा है कि दुख-दर्द सुनाने लग जाओ हर किसी को न मगर ज़ख़्म दिखाने लग जाओ नील के पानियो रस्ते में न हाइल होना क्या पता ज़र्ब-ए-कलीमी से ठिकाने लग जाओ कितनी मुश्किल से तो आए हो ज़रा ठहरो भी सहल अंदाज़ में इस तरह न जाने लग जाओ सामने आओ तो जैसे कि गुल-ए-तर कोई और तन्हाई में फिर अश्क बहाने लग जाओ मौसम-ए-दिल जो कभी ज़र्द सा होने लग जाए अपना दिल ख़ून करो फूल उगाने लग जाओ अक़्ल समझाए तो कुछ लाज रखो उस की भी जब जुनूँ तेज़ हो तो ख़ाक उड़ाने लग जाओ कभी तन्हाई में बैठो तो फ़क़त रोते रहो फिर अचानक ही कभी हँसने-हँसाने लग जाओ बोझ दिल पर है नदामत का तो ऐसा कर लो मेरे सीने से किसी और बहाने लग जाओ