ये तो नहीं कि तुम से मोहब्बत नहीं मुझे इतना ज़रूर है कि शिकायत नहीं मुझे मैं हूँ कि इश्तियाक़ में सर-ता-क़दम नज़र वो हैं कि इक नज़र की इजाज़त नहीं मुझे आज़ादी-ए-गुनाह की हसरत के साथ साथ आज़ादी-ए-ख़याल की जुरअत नहीं मुझे दूभर है गरचे जौर-ए-अज़ीज़ाँ से ज़िंदगी लेकिन ख़ुदा-गवाह शिकायत नहीं मुझे जिस का गुरेज़ शर्त हो तक़रीब-ए-दीद में इस होश इस नज़र की ज़रूरत नहीं मुझे जो कुछ गुज़र रही है ग़नीमत है हम-नशीं अब ज़िंदगी पे ग़ौर की फ़ुर्सत नहीं मुझे मैं क्यूँ किसी के अहद-ए-वफ़ा का यक़ीं करूँ इतनी शदीद ग़म की ज़रूरत नहीं मुझे सज्दे मिरे ख़याल-ए-जज़ा से हैं मावरा मक़्सूद बंदगी से तिजारत नहीं मुझे मैं और दे सकूँ न तिरे ग़म को ज़िंदगी ऐसी तो ज़िंदगी से मोहब्बत नहीं मुझे 'एहसान' कौन मुझ से सिवा है मिरा अदू अपने सिवा किसी से शिकायत नहीं मुझे