यूँ आप जो आसूदा-ए-ग़म करते रहेंगे हम दर्द-ए-दिल-ओ-जान को कम करते रहेंगे समझे थे कि वो शिकवे गिले भूल गए हैं मा'लूम न था दिल पे रक़म करते रहेंगे रक्खेंगे तिरे ग़म को ज़माने से छुपा कर तन्हाई में हम आँख को नम करते रहेंगे आज़ार पे आज़ार दिए जाएँगे हँस कर हर हाल में वो हम पे करम करते रहेंगे क्या अपनी हक़ीक़त है सिवा तेरी अता के हम ख़ुद को तिरी ज़ात में ज़म करते रहेंगे जज़्बात से मेआ'र से या ख़ून-ए-जिगर से हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे ईमान की दौलत है कहीं कुफ़्र का ग़लबा सब ज़िक्र-ए-ख़ुदा ज़िक्र-ए-सनम करते रहेंगे हालात न बदलें न सही फिर भी ऐ 'मीना' कोशिश तो मगर अहल-ए-क़लम करते रहेंगे