यूँ भी मेरा बयाँ अलग है कुछ क्यूँकि मेरी ज़बाँ अलग है कुछ आख़िरी बार जल रहा हूँ क्या अब के मेरा धुआँ अलग है कुछ सिर्फ़ शक्लें ही हैं अलग वर्ना तुझमें मुझ में कहाँ अलग है कुछ जा कि तुझ को मुआ'फ़ करते हैं रंज-ए-दुनिया यहाँ अलग है कुछ खोलनी है ज़बाँ क़लम की आज दिल में उठती फ़ुग़ाँ अलग है कुछ हम हैं मुंकिर तो क्यूँ करें सज्दा क्या तिरा आस्ताँ अलग है कुछ