यूँ भी तिरा एहसान है आने के लिए आ ऐ दोस्त किसी रोज़ न जाने के लिए आ हर-चंद नहीं शौक़ को यारा-ए-तमाशा ख़ुद को न सही मुझ को दिखाने के लिए आ ये उम्र, ये बरसात, ये भीगी हुइ रातें इन रातों को अफ़्साना बनाने के लिए आ जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने ऐसे ही बहाने से न जाने के लिए आ माना कि मोहब्बत का छुपाना है मोहब्बत चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ तक़दीर भी मजबूर है, तदबीर भी मजबूर इस कोहना अक़ीदे को मिटाने के लिए आ आरिज़ पे शफ़क़, दामन-ए-मिज़्गाँ में सितारे यूँ इश्क़ की तौक़ीर बढ़ाने के लिए आ 'तालिब' को ये क्या इल्म, करम है कि सितम है जाने के लिए रूठ, मनाने के लिए आ