यूँ है तिरी तलाश पे अब तक यक़ीं मुझे जैसे तू मिल ही जाएगा फिर से कहीं मुझे मैं ने तो जो भी दिल में था चेहरे पे लिख लिया तू है कि एक बार भी पढ़ता नहीं मुझे ढलते ही शाम टूट पड़ा सर पे आसमाँ फिर मेरा बोझ ले गया ज़ेर-ए-ज़मीं मुझे ता'बीर जागती हुई आँखों को क्या मिले इक ख़्वाब भी तो शब ने दिखाया नहीं मुझे कंदा है मेरा नाम जहाँ आज भी 'नसीम' पहचानते नहीं उसी घर के मकीं मुझे