यूँ ही है नूर वहदत का दिल-ए-इंसाँ में आ जाना कि जैसे आँख के तिल में जहाँ-भर का समा जाना न लेते नाम भी वो ज़ुल्म का भूले से दुनिया में अगर इतना समझ लेते कि है पेश-ए-ख़ुदा जाना ये फ़ितरत हुस्न की है और वो तीनत मोहब्बत की जिसे तुम ने जफ़ा समझा उसे हम ने वफ़ा जाना बयाँ कर देना हाल-ए-ज़ार हम सहरा-नशीनों का अगर कूचे में इस ज़ालिम के ओ बाद-ए-सबा जाना मिले फ़ुर्सत अगर तुम को तो बा'द मर्ग दम-भर को बरा-ए-फ़ातिहा बेकस की तुर्बत पर भी आ जाना न समझी तुम ने कुछ हस्ती हमारी इश्क़ में लेकिन तुम्हें अपने से भी हम ने सिवा समझा सिवा जाना हक़ीक़त में वही मंज़िल-शनास-ए-राह-ए-इरफ़ाँ है कि जिस ने अपनी हर इक साँस को बाँग-ए-दरा जाना समझता कोई जीते-जी तो हाँ इक बात थी 'शो'ला' मिरे मरने पे दुनिया ने मुझे जाना तो क्या जाना