यूँ ही कब तक मिरी तक़दीर में बल आएँगे आज की बात पे कहते हो कि कल आएँगे पाँव जब जज़्ब-ए-मोहब्बत के निकल आएँगे वादी-ए-हुस्न-ओ-जवानी में ख़लल आएँगे चल तू ले कर हमें ऐ मस्ती-ए-ज़ौक़-ए-सज्दा मुँह पे ख़ाक-ए-दर-ए-महबूब ही मल आएँगे हौसला शर्त है हालात से मायूस न हो रास्ते ख़ुद ही चटानों से निकल आएँगे करवटें लेता है जब दर्द-ए-मोहब्बत दिल में कोई चुपके से ये कहता है सँभल आएँगे जब बहार आएगी फूलों पे शबाब आएगा तज़्किरे मेरी तबाही के निकल आएँगे अब न आएगा कोई सानी-ए-'शादाँ' 'अनवर' गो बहुत अहल-ए-सुख़न अहल-ए-ग़ज़ल आएँगे