यूँ हिरासाँ हैं मुसाफ़िर बस्तियों के दरमियाँ हो गई हो शाम जैसे जंगलों के दरमियाँ ज़िंदगी से अब यही दो-चार पल का साथ है पानियों से आ गया हूँ दलदलों के दरमियाँ चार जानिब फैलते ही जा रहे हैं रेगज़ार तिश्नगी ही तिश्नगी है ख़्वाहिशों के दरमियाँ देखते ही देखते आपस में दुश्मन हो गए ख़ून का दरिया रवाँ है भाइयों के दरमियाँ अब तो इस की ज़द में है सारा नगर आया हुआ वो भी दिन थे सैल था जब साहिलों के दरमियाँ अध-खुली आँखें हैं 'ख़ावर' और साँसों का अज़ाब लाश की सूरत पड़ा हूँ करगसों के दरमियाँ