यूँ मैं सीधा गया वहशत में बयाबाँ की तरफ़ हाथ जिस तरह से आता है गरेबाँ की तरफ़ बैठे बैठे दिल-ए-ग़म-गीं को ये क्या लहर आई उठ के तूफ़ान चला दीदा-ए-गिर्यां की तरफ़ देखना लाला-ए-ख़ुद-रौ का लहकना साक़ी कोह से दौड़ गई आग बयाबाँ की तरफ़ रो दिया देख के अक्सर मैं बहार-ए-शबनम हँस दिया देख के अक्सर गुल-ए-ख़ंदाँ की तरफ़ बात छुपती नहीं पड़ती हैं निगाहें सब की उस के दामन की तरफ़ मेरे गरेबाँ की तरफ़ सैकड़ों दाग़-ए-गुनह धो गए रहमत से तिरी क्या घटा झूम के आई थी गुलिस्ताँ की तरफ़ चश्म-ए-आईना परेशाँ-नज़री सीख गई देखता था ये बहुत ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की तरफ़ सर झुकाए हुए है 'नज़्म' बसान-ए-ख़ामा सम्त सज्दे की है तेरी ख़त-ए-फ़रमाँ की तरफ़