यूँ न मायूस हो ऐ शोरिश-ए-नाकाम अभी मेरी रग रग में है इक आतिश-ए-बेनाम अभी आशिक़ी क्या है हर इक शय से तही हो जाना उस से मिलने की है दिल में हवस-ए-ख़ाम अभी इंतिहा कैफ़ की उफ़्तादगी ओ पस्ती है मुझ से कहता था यही दुर्द-ए-तह-ए-जाम अभी इल्म ओ हिकमत की तमन्ना है न कौनैन का ग़म मेरे शीशे में है बाक़ी मय-ए-गुलफ़ाम अभी सब मज़े कर दिए ख़ुर्शीद-ए-क़यामत ने ख़राब मेरी आँखों में था इक रू-ए-दिलाराम अभी बुलबुल-ए-ज़ार से गो सेहन-ए-चमन छूट गया उस के सीने में है इक शोला-ए-गुलफ़ाम अभी
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