यूँ न पीने में बसर उम्र की हर शाम करो शौक़-ए-रिंदी है तो साक़ी से नज़र आम करो फिर न आएँगे नज़र ऐसे मुक़द्दस चेहरे जो बक़ा बख़्शें उन्हें दुनिया में वो काम करो है कुदूरत से तो फिर भीक से ठोकर अच्छी अपनी बदनामी से अच्छा है मिरा नाम करो बुत हैं दस बीस मगर चाहने वाला दिल एक एक इक कर के मोहब्बत से उन्हें राम करो छेड़ दो ज़िक्र किसी नर्गिस-ए-मस्ताना का सामने मेरे न तुम ज़िक्र-ए-मय-ओ-जाम करो तुम को फ़ुर्सत हो अगर बनने-सँवरने से नदीम इश्क़ फ़रमाने से बेहतर है कि आराम करो जैसा गुम-सुम है 'कँवल' चोट है गहरी खाई आज तुम उस को रुला दो तो बड़ा काम करो