यूँ तो है सहल हर इक काम का आसाँ होना मौलवी के लिए दुश्वार है इंसाँ होना नीम उर्यां जो नज़र आती हूँ चलते फिरते कोई दुश्वार है उन के लिए उर्यां होना बैठने की जो इजाज़त मुझे डेवढ़ी पे मिली बोले अहबाब मुबारक तुझे दरबाँ होना मस्लहत का था तक़ाज़ा जो बढ़ा ली दाढ़ी अक़्द की शर्त थी दीं-दार मुसलमाँ होना भूल कर भी न कभी शैख़ को मेहमाँ करना भूल कर भी न कभी शैख़ के मेहमाँ होना इश्तिहा-ख़ेज़ है इफ़्तारी की ख़ुशबू 'हाशिम' रोज़ा-दारों न मुझे देख के हैराँ होना