यूँ तो हर गाम पे ठोकर कोई खा जाता हूँ फिर भी ये अज़्म मिरा है कि चला जाता हूँ बारहा ऐसे सवालात ने तड़पाया है मैं भी क्या उन के ख़यालात पे छा जाता हूँ कोई हमराह ज़रूरी है हर इक मंज़िल तक हर क़दम पर रह-ए-उल्फ़त में गिरा जाता हूँ हर किसी पर न अयाँ हो ये मोहब्बत मेरी मैं तिरी बज़्म से ख़ामोश उठा जाता हूँ आज कुछ सोच के महफ़िल में तिरी आया था ये नहीं तुझ को गवारा तो चला जाता हूँ फिर बुलंदी पे सितारा है मिरी उल्फ़त का फिर मैं उस शोख़ के नज़दीक हुआ जाता हूँ नाज़ क़िस्मत पे करूँ जितना भी कम है 'अनवर' मैं फ़क़त आप का दीवाना कहा जाता हूँ