यूँ तो यूसुफ़ से हसीं और जवाँ थे पहले आप से लोग ज़माने में कहाँ थे पहले रोज़-ए-अव्वल से हैं हम सोख़्ता-दिल कुश्ता-ए-ग़म आज जैसे हैं यूँही शो'ला-ब-जाँ थे पहले इश्क़ ने खोल दिए हम पे वो असरार-ए-हयात जो ज़माने की निगाहों से निहाँ थे पहले आख़िर आना ही पड़ा लौट के तेरी जानिब क़ाफ़िले दिल के ब-हर-सम्त-ए-रवाँ थे पहले उन बहारों को अजब रंग में पाया हम ने जिन से वाबस्ता हसीं वहम-ओ-गुमाँ थे पहले वो सियह-बख़्त यहाँ महव-ए-फ़ुग़ाँ आज भी हैं जो सियह-बख़्त यहाँ महव-ए-फ़ुग़ाँ थे पहले मरहले इश्क़ के आसान समझ बैठे थे 'मंशा' हम लोग भी क्या सादा-गुमाँ थे पहले