यूँही गर लुत्फ़ तुम लेते रहोगे ख़ूँ बहाने में तो बिस्मिल ही नज़र आएँगे हर सू इस ज़माने में ज़रा दम लो तो फिर तुम को सुनाईं दास्ताँ दिल की अभी कुछ रंग भरना है हमें ग़म के फ़साने में लहू से हो गई रंगीन देखो आस्तीं अपनी हज़ारों कोशिशें कीं तुम ने गो दामन बचाने में यही कह कर असीरान-ए-क़फ़स आँसू बहाते हैं क़फ़स में वो कहाँ राहत मिली जो आशियाने में कुछ ऐसा बे-ख़ुदी-ए-शौक़ ने बेहिस बनाया है अज़िय्यत अब नहीं महसूस होती तीर खाने में वो बरहम होंगे दुनिया जान लेगी राज़ उल्फ़त का वफ़ा पर हर्फ़ आ जाएगा दो आँसू बहाने में दवा का वक़्त अब बाक़ी नहीं हंगाम-ए-रुख़्सत है सिधारें चारा-गर अब देर क्या है नींद आने में बला से बिजलियाँ गिरती हैं दुनिया पर गिरें लेकिन मज़ा मिलता है उन को दम-ब-दम यूँ मुस्कुराने में मुनासिब है यही 'रिफ़अत' कि बाज़ आओ मोहब्बत से है लाज़िम जान का ख़तरा किसी से दिल लगाने में