यूँही रंजिश हो और गिला भी यूँही हो जे हर बात पर ख़फ़ा भी यूँही कुछ न हम को ही भा गया ये तौर वाक़ई ये कि है मज़ा भी यूँही सैद-ए-कंजशक से न हाथ उठा आ के फँस जाए है हुमा भी यूँही जूँ उजाड़ा तू घर मिरा ऐ इश्क़ ख़ाना वीरान हो तिरा भी यूँही क्यूँ न रोऊँ मैं देख ख़ंदा-ए-गुल कि हँसे था वो बेवफ़ा भी यूँही अब तलक मेरी ज़ीस्त ने की वफ़ा बस मैं देखी तिरी जफ़ा भी यूँही मस-ए-दिल को दिया कर अपने गुदाज़ हाथ चढ़ जा है कीमिया भी यूँही ये कहाँ और वो गुल किधर 'क़ाएम' इक हवा बाँधे है सबा भी यूँही