यूँही ठहर ठहर के मैं रोता चला गया मोती सँभल सँभल के पिरोता चला गया साँचों में हुस्न ओ नूर के ढलता गया शबाब सर-ता-क़दम शबाब ही होता चला गया दुश्मन ने मेरी राह में काँटे बिछा दिए और मैं उठा तो फूल ही बोता चला गया हर नफ़स-ए-आरज़ू जो ब-उनवान-ए-होश था जैसे कोई शराब से धोता चला गया झूला झुला रही थी मुझे दिल की आरज़ू सब जागते थे और में सोता चला गया रंज ओ मलाल ओ कैफ़ ओ नशात ओ बहार-ए-उम्र जो कुछ मुझे मिला उसे खोता चला गया ग़म का ख़मोश नग़्मा-ए-दिल-सोज़ भी 'नुशूर' इक कैफ़ सा रगों में समोता चला गया