यूँ देखते हो क्यों मुझे नज़रें उठा के तुम दीवाना कर रहे हो तमाशा बना के तुम सुनते हैं एक नूर है रौशन हिजाब में दिखला दो इक झलक ज़रा पर्दा उठा के तुम मैं हूँ तुम्हारा और तुम्हारा रहूँगा मैं क्यों आज़मा रहे हो मुझे आज़मा के तुम हम को बनाया आइना दीदार के लिए अब मुस्कुरा रहे हो ये सूरत मिटा के तुम रुस्वाइयों का ख़ौफ़ था रुस्वाइयाँ मिलीं अब क्या करोगे राज़-ए-मोहब्बत छुपा के तुम ये चाँद आसमाँ से ज़मीं पर उतर पड़े इक बार देख लो जो उसे मुस्कुरा के तुम 'ज़ीशान' तुम ने दिल को सनम-ख़ाना कर लिया अब क्या करोगे सू-ए-हरम सर झुका के तुम