यूँही बे-नाम त'अल्लुक़ में न मारे जाते अच्छा होता जो तिरे हुस्न पे वारे जाते बारहा हम ने उसे रो के कहा है साहब दिन जुदाई के नहीं हम से गुज़ारे जाते हम को मालूम न था आज मगर सोचा है तेरी ज़ुल्फ़ों की तरह बख़्त सँवारे जाते इस लिए हम ने जवानी को यहाँ बेच दिया बे-नवाओं से कहाँ क़र्ज़ उतारे जाते आज शिद्दत से ये एहसास हुआ है जानाँ हम कभी अपने हवाले से पुकारे जाते डूबना अपने मुक़द्दर में लिखा था 'तन्हा' क्यों न फिर दूर सफ़ीने से किनारे जाते