दिल की आवाज़ पे बैअ'त भी तो हो सकती है तुम अगर चाहो मोहब्बत भी तो हो सकती है मैं जिसे समझा हूँ आवारा हवा की दस्तक तेरे आने की बशारत भी तो हो सकती है ज़िंदगी तेरे तसव्वुर से ही मशरूत नहीं तेरी यादों से हलाकत भी तो हो सकती है आख़िरी बार तुझे देखना हसरत ही नहीं मरने वाले की ज़रूरत भी तो हो सकती है कब ज़रूरी है कि हम क़ैस की सुन्नत पे चलें मज़हब-ए-इश्क़ में बिदअ'त भी तो हो सकती है इस लिए देखता रहता हूँ मुसलसल तुझ को आँख महरूम-ए-बसारत भी तो हो सकती है लफ़्ज़ शे'रों में जो ढलते नहीं 'तहसीन' मिरे सोच के रिज़्क़ में क़िल्लत भी तो हो सकती है