ज़बाँ है ना-तवानी से अगर बंद मिरे दिल पर नहीं मा'नी के दर बंद हमारी बेकसी कब तक छुपेगी ख़ुदा पर तो नहीं राह-ए-ख़बर बंद ब-याद-ए-रंज-ए-यारान-ए-नज़र-बंद किया हम ने भी अब मिलने का दर बंद दिलों में दर्द ही की कुछ कमी है नहीं है आह पर राह-ए-असर बंद बुत-ए-मशरिक़ नहीं मुहताज-ए-सामाँ कमर ही जब नहीं कैसा कमर-बंद कहूँगा मर्सिया इस ग़म में ऐसा खुले मा'नी दिखाए जिस का हर बंद ख़याल-ए-चश्म-ए-फ़त्ताँ में हुआ महव मिरा दिल अब है सीने में नज़र-बंद