ज़ब्त का ऐसे इम्तिहान न ले ऐ मिरी जान मेरी जान न ले साँस रुकता है तेरे रुकने से वक़्फ़े बातों के दरमियान न ले तर्क-ए-उल्फ़त का कहते डरता हूँ वो कहीं मेरी बात मान न ले ये अदालत नहीं मोहब्बत है तू मिरा हल्फ़िया बयान न ले कर मुकम्मल सफ़र तवक्कुल से ले सफ़ीना तो बादबान ना ले तू कहाँ और जनाब-ए-क़ैस कहाँ नाम उन का ऐ बद-ज़बान ना ले वस्ल और हिज्र से निकल 'ख़ालिद' कोई लम्हा किसी से दान ना ले