ज़ब्त का हौसला बाक़ी न शकेबाई है तिरी चाहत मुझे किस मोड़ पे ले आई है बे-सबब भी तो हुए हम न असीर-ए-गेसू दिल ने बहकाया है या लग़्ज़िश-ए-बीनाई है दिल की दुनिया में हुई फिर कोई हलचल पैदा इस क़दर राह-ए-वफ़ा आज जो गहनाई है कोई भी तो न शब-ए-तार में काम आया मिरे कहने को चाँद सितारों से शनासाई है साँस लेने पे है पाबंदी दुआ जीने की ऐ मसीहा ये भला कैसी मसीहाई है अपनी ही ज़ात में इक हश्र बपा रहता है दिल तमाशा है मिरी आँख तमाशाई है तिरी जानिब ही सदा रखती है माइल मुझ को कोई ऐसी तिरे अतवार में गहराई है उन के कूचे से गुरेज़ाँ तो नहीं हूँ 'साइर' रोज़ का मिलना भी तो बाइस-ए-रुस्वाई है