ज़ख़्मों से अच्छा हो जाऊँ By Ghazal << अब वहाँ क्यों मुझ को जाता... मैं उस का मज्ज़ूब हुआ >> ज़ख़्मों से अच्छा हो जाऊँ बात करूँ हल्का हो जाऊँ काश मिरी क़ीमत बढ़ जाए काश मैं कुछ महँगा हो जाऊँ तेरे क़दमों पे सर रख दूँ मैं दुनिया जैसा हो जाऊँ आ जाऊँ उस की आँखों में और मैं क्या से क्या हो जाऊँ सब का असर 'फ़रहत' ले लूँ मिट्टी का पुतला हो जाऊँ Share on: