ज़मीन-ए-चश्म के सीने पे पाँव धरते अश्क जहान-ए-हिज्र से शोरीदा-सर गुज़रते अश्क ग़नीम-ए-नग़्मा-ए-इशरत को क्या दिखाई दें ग़रीब-ए-शहर की आँखों में रक़्स करते अश्क मसीह बन के लिबास-ए-विसाल उतरा है किसी की शाल पे गिर कर जिए हैं मरते अश्क नमक है आँख का सत-रंगियाँ नहाता हुआ क़बा-ए-ज़ख़्म के रेशों में रंग भरते अश्क हमारा गिर्या मुअख़्ख़र हुआ तसल्ली से दिलासा देती नज़र से छुपे हैं डरते अश्क