फ़रेब-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा है और झूटी तसल्ली बस By Ghazal << कोई सदा भी हम-आहंग नहीं ह... कंकर कह न पत्थर कह >> फ़रेब-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा है और झूटी तसल्ली बस तअ'ल्लुक़ आप का है क्या सियासत के घराने से तुम्हारी शाइ'री से दिल ही जलता है फ़क़त 'ज़ेबी' कि मुमकिन ही नहीं इस्लाह यूँ जाँ को खपाने से Share on: