ज़िंदगी बे-सबात कितनी है चंद रोज़ा हयात कितनी है परतव-ए-हुस्न-ए-यार है वर्ना दिल की कुल काएनात कितनी है दर्द-ए-दिल उठ के तू बता दे ज़रा पूछते हैं वो रात कितनी है आदमी मर रहा है जीने को इम्बिसात-ए-हयात कितनी है बज़्म-ए-दुनिया में आए और चले दास्तान-ए-हयात कितनी है बात 'नाशाद' की भी सुन लेते इक ज़रा सी है बात कितनी है