ज़िंदगी जब सुकून खोएगी बे-दिली देख कर के रोएगी नींद आँखों से दर-ब-दर हो कर किस के ज़ानू पे जा के सोएगी दिल के अपने अलग मसाइल हैं आँख क्यों बेवफ़ा को रोएगी जिस जवानी पे नाज़ है तुझ को आख़िरश ख़ाक में समोएगी तू रचा कर हथेलियाँ अपनी ख़ून-ए-नाहक़ से हाथ धोएगी याद आएँगे वस्ल के मंज़र फूल धागे में जूँ पिरोएगी तीर पैवस्त है मोहब्बत का दिल में अब कौन शय समोएगी और क्या होगा हिज्र से 'महवर' चंद दिन आबरू ही खोएगी