ज़िंदगी क्यों हुई वक़्फ़-ए-ग़म-ओ-आलाम न पूछ मुझ से ऐ दोस्त मिरे इश्क़ का अंजाम न पूछ कौन है किस ने बना रक्खा है दीवाना मुझे हम-नशीं अक़्ल से पहचान मगर नाम न पूछ उस की नाकाम तमन्ना को समझ ऐ सय्याद मुर्ग़-ए-दिल आ गया क्यों ख़ुद ही तह-ए-दाम न पूछ हो के महरूम तिरे लुत्फ़-ओ-करम से ऐ दोस्त किस तरह मैं ने गुज़ारे सहर-ओ-शाम न पूछ इश्क़-ए-ख़ुद्दार की अज़्मत को समझ आज 'मयंक' बे-नक़ाब आ गया क्यों कोई लब-ए-बाम न पूछ