ज़िंदगी मैं ने हज़ारों ख़्वाहिशों में बाँट दी जैसे इक तस्वीर टूटे आइनों में बाँट दी रंज-ओ-ग़म ख़ौफ़-ओ-अज़िय्यत रत-जगे महरूमियाँ दिल की बस्ती अब हज़ारों बस्तियों में बाँट दी मुफ़लिसी में और क्या देते भला अहबाब को दर्द की दौलत बची थी दोस्तों में बाँट दी अब तुलूअ' हो या न हो सुब्ह-ए-करम क्या फ़ाएदा मैं ने शाम-ए-बे-बसी तारीकियों में बाँट दी जब मिला इज़्न-ए-रिहाई ज़िंदगी की क़ैद से आख़िरी साँसों की दौलत हसरतों में बाँट दी मेरे हमसाए ने जो कुत्ते को फेंकी थी 'नसीर' मैं ने वो रोटी उठा कर बच्चियों में बाँट दी