झरिया (धनबाद) बिहार में जनाब कँवर महिन्द्र सिंह बेदी की निज़ामत में मुशायरा हो रहा था। मरहूम नाज़िर ख़य्यामी ने अपने मज़ाहिया कलाम और उससे भी बेहतर गुफ़्तगु से मुशायरा लूट लिया। उसके बाद कँवर साहिब ख़ुद खड़े हुए और फ़र्माया, “हज़रात नाज़िर ने अपने फ़न से दिलों पर फ़तह पाई है। आप सब ज़िंदगी की परेशानियों को भूल कर क़हक़हों की दुनिया में खो गये हैं। ऐसे में किसी संजीदा शायर को बुलाना उसे क़ुर्बान करना होगा। इस लिए मैं ख़ुद पढ़ता हूँ और अपने आपको क़ुर्बानी के लिए पेश करता हूँ।” इस पर बशीर बद्र कँवर साहिब से बे-जा मुदाख़िलत की माफ़ी चाहते हुए बोले कि “में एक शरई मसला याद दिलाने के लिए हाज़िर हुआ हूँ। वो ये कि इस्लाम में ऐ’बदार की क़ुर्बानी मम्नू’अ है।”