एक मुशायरे के इख्तिताम पर जब साग़र निज़ामी को असल तय-शुदा मुआ’वज़े से कम रक़म दी गयी और उसकी रसीद उनके सामने रखी गयी तो वो उसे देखते ही एक दम फट पड़े। “मैं इस पर दस्तख़त नहीं कर सकता।” इतने में मजाज़ वहां आये। उन्होंने ये जुमला सुना तो निहायत मा’सूमियत से मुंतज़िम को मश्विरा देने लगे, “अगर दस्तख़त नहीं कर सकते तो साग़र साहिब से अँगूठा ही लगवा लीजिए।”