हिंदुस्तान के साबिक़ होम मिनिस्टर कैलाश नाथ काटजू की सदारत में मुशायरा हो रहा था। अनवर साबरी जब स्टेज पर आए तो कलाम पढ़ने से पहले फ़रमाने लगे, “वक़्त-वक़्त की बात है, मैं अब तक वही शायर का शायर हूँ और काटजू साहब वज़ीर बन गए हैं, हालाँकि अंग्रेज़ों के दौर-ए-हकूमत में हम दोनों एक ही जेल में रह चुके हैं।” कँवर साहब ने फ़ौरन जुमला चुस्त किया, “लेकिन जराइम जुदा-जुदा थे।”