एक पैरोडी मुशायरे का क़िस्सा By Latiife << जहन्नम की ज़बान एक जेल के क़ैदी >> दिल्ली में एक पैरोडी शायरी का मुशायरा था। जब गुलज़ार ज़ुत्शी का नाम सदारत के लिए पेश किया गया तो वो इन्किसार से बोले, “हुज़ूर मैं सदारत का अह्ल कहाँ हूँ?” इस पर कँवर महिंद्र सिंह बेदी ने फ़रमाया, “मुतमइन रहें, आप भी सदर की पैरोडी ही हैं।” Share on: