आलिया इमाम साहिबा के हाँ फ़ैज़ साहब की दावत थी। मेह्दी साहब साक़ी गरी के फ़राइज़ सरअंजाम दे रहे थे। शे’रो शायरी का दौर चल रहा था। आलिया इमाम के बहनोई ने बाहर घर वालो पर बरसना शुरू कर दिया। “आलिया का घर इस क़ाबिल नहीं कि कोई शरीफ़ आदमी उसके घर में रह सके, सय्यदज़ादी कहलाती हैं और घर पर जाम से जाम टकराए जा रहे हैं।” आवाज़ें सुनकर आलिया घबराईं। फ़ैज़ साहब निहायत इतमीनान से आलिया के साथ बाहर आए, उन साहब के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, “भाई साहब! हम तो कभी किसी की इबादत में मुख़िल नहीं होते। तो फिर आप क्यों?” ये जुमला सुनते ही भाई साहब हंस पड़े और महफ़िल में शरीक हो कर फ़ैज़ साहब के कलाम पर दाद देने लगे।