ज़हरा निगाह के हाँ दावत ख़त्म हुई तो ज़हरा निगाह ने साक़ी फ़ारूक़ी से दरख़्वास्त की कि अहमद फ़राज़ साहब को उनकी रिहाइश गाह तक पहुंचा दें। साक़ी ने जवाब दिया, “मैं उन्हें अपनी गाड़ी में नहीं बिठा सकता क्योंकि जूं ही कोई ख़राब शायर मेरी गाड़ी में बैठता है, गाड़ी का एक पहिया हिलने लगता है।” इस पर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने फ़िक़रा कसा, “साक़ी तुम्हारे बैठने से तो तुम्हारी गाड़ी के दोनों पहिये मुस्तक़िल हिलते रहते होंगे।”